वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />६ सितम्बर २०१५<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />श्रीमद्भगवद गीता<br />(अध्याय-६, श्लोक-३५)<br />असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।<br />अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥<br />.<br />भावार्थ:<br />निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है।<br />यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है||<br /><br />प्रसंग:<br />कचरे से मोह छोड़ना है वैराग्य; निरंतर सफाई है अभ्यास<br />मन परिस्तिथि से बिलग कैसे रह सकता है?<br />अभ्यास का क्या अर्थ है?